लोगों की राय

कविता संग्रह >> खत्म नहीं होती बात

खत्म नहीं होती बात

बोधिसत्व

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8145
आईएसबीएन :9788126718849

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

171 पाठक हैं

जीने का सहजबोध और उसको सराहती-संभालती दुधमुँही कोंपलों-सी कुछ यादें, कुछ कचोटें, कुछ लालसाएँ और कुछ शिकायतें करती बोधिसत्व की कविताएँ

Khatam Nahin Hoti Baat by Bodhisatwa

जीने का सहजबोध और उसको सराहती-संभालती दुधमुँही कोंपलों-सी कुछ यादें, कुछ कचोटें, कुछ लालसाएँ और कुछ शिकायतें। बोधिसत्व की ये कविताएँ समष्टि-मानस की इन्हीं साझी जमीनों से शुरु होती हैं, और बहुत शोर न मचाते हुए, बेकली का एक मासूम-सा बीज हमारे भीतर अँकुराने के लिए छोड़ जाती हैं। इन कविताओं की हरकतों से जो दुनिया बनती है, वह समाज के उस छोटे आदमी की दुनिया है जिसके बारे में ये पंक्तियाँ हैं:

 

‘‘माफी माँगने पर भी
माफ नहीं कर पाता हूँ
छोटे-छोटे दुखों से
उबर नहीं पाता हूँ
पावभर दूध बिगड़ने पर
कई दिन फटा रहता है मन
कमीज पर नन्हीं-सी खरोंच
देह के घाव से ज्यादा देती है दुख।’’ (छोटा आदमी)

 

छोटे आदमी की यह दुनिया जिस पर आज किस्म-किस्म की बड़ी चीजें और दुनियाएँ निशाना साध रही हैं, अगर सुरक्षित है, और रहेगी, तो उन्हीं कुछ छोटी चीजों के सहारे जिन्हें बोधिसत्व की ये कविताएँ रेखांकित कर रही हैं। मसलन साथ पढ़ी मुहल्ले की उन लड़कियों की याद जिनके बारे में अब कोई खबर नहीं (हाल-चाल); गाँव के वे बेनाम-बेचेहरा लोग जिनके सुरक्षित साये में बचपन बीता, और आज महानगर की भूल-भुलैया में जिनकी फिर से जरूरत है (मैं खो गया हूँ); अपने घावों में सबको पनाह देने वाली उस आवारा लड़की का प्यार जिसके अपने पास कोई जगह कहीं नहीं (कोई जगह)। और ऐसी ही अन्य तमाम चीजें जो हम साधारण जनों के संसार को हरा-भरा रखती हैं, इन कविताओं के माध्यम से हम तक पहुँच रही हैं।

‘लालच’ शीर्षक कविता में व्यक्त इस छोटे आदमी की नग्न लालसा हिन्दी कविता को एक नया प्रस्थान बिन्दु देती प्रतीत होती है। लग रहा है कि थोड़ी हिचक के साथ ही, लेकिन अब वह उन सुखों में अपनी भी हिस्सेदारी चाहता है, जिनका उपभोग बाकी पूरा समाज इतने निर्लज्ज अधिकारबोध के साथ कर रहा है।

‘खत्म नहीं होती बात’ के रूप में कविता-प्रेमियों के सम्मुख यह ऐसी कविता-पुस्तक है जो काव्य-प्रयोगों के लिए नहीं अपने भाव-सातत्य और वैचारिक नैरंतर्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book